गोवर्धन डाकू और श्रीकृष्ण की अद्भुत कथा – गुरुदेव जी महाराज

गोवर्धन डाकू और श्रीकृष्ण की अद्भुत कथा

एक चोर था, गोवर्धन डाकू। बहुत नामी डाकू था।
बिल्कुल सरल उदाहरण में तुम्हें बता रहे हैं।

एक दिन राज-कर्मचारियों ने उसका पीछा किया। वह भागा। घोड़ा भी छोड़ दिया, पैदल भागा। एक जगह देखा कि बहुत सत्संग हो रहा है, कथा हो रही है।

वहां पंडित परशुराम जी महाराज कथा कर रहे थे। करमती बाई के पिता। यह प्रमाणित कथा हम आपको बता रहे हैं।

तो वह डाकू उस सभा में घुस गया। राज-कर्मचारी भी आए। उन्होंने सोचा – सभा में चोर कैसे हो सकता है? यहां तो चोर घुसने का समय ही नहीं है। परंतु उसे पाया ही नहीं गया।

जब कथा दो-तीन घंटे बाद समाप्त हुई, तो प्रसंग चल रहा था – वृंदावन में श्री बांके बिहारी लाल को आज यशोदा मैया ने सोने की करधनी दी। सोना वगैरह सब।

अब वह चोर आदमी सुन रहा था कि सोने की करधनी भगवान श्रीकृष्ण को मिली। बांके बिहारी को पुकारा। आठ वर्ष की अवस्था है। मैया ने सोने की लकुटी भी दी, सोने का श्रृंगार किया। और इतना सब होते हुए भी वह मालिक साधारण से अपने सखाओं के साथ गाय चराने जा रहे हैं।

कथा समाप्त हुई। अब गोवर्धन डाकू नजदीक पहुंचा। चाकू निकाला और पंडित परशुराम जी के गले पर लगा दिया। बोला – “पता लिखो! ये जो इतना धनी बालक का वर्णन कर रहे थे, उनका पता लिखो।”

पंडित जी ने कहा – “भैया! इतना उतावला क्यों हो रहे हो?”
डाकू बोला – “पता लिखो।”
पंडित जी ने कहा – “मथुरा क्षेत्र, वृंदावन। बाप का नाम नंद बाबा। कन्हैया – गाय चराने वाले।”

फिर पंडित जी बोले – “सुनो, तुम्हारे जैसे डाकू उसको चोरी नहीं कर सकते। बहुत नटखट, बहुत प्रवीण बालक है।”

डाकू बोला – “तुम हमको ऐसा समझते हो? मैंने अकेले-अकेले राजाओं के महलों को लूटा है।”
पंडित जी ने कहा – “फिर भी नहीं लूट सकते। बहुत प्रवीण है।”

डाकू ने कसम खाई – “जब तक उसे लूट नहीं लूंगा, तब तक पानी नहीं पिऊंगा।”

परशुराम जी ने सोचा – भगवान की अपार कृपा इस पर होने वाली है। उन्होंने कहा – “सुनो, हमारी तरफ से माखन-मिश्री ले लो। जब तुम्हारा बस न चले, तो उसे खिला देना।”

डाकू बोला – “हां, यह बात भी ठीक है। बच्चा फुसला कर काम चल जाए तो मारना क्यों पड़ेगा?”
उसने माखन-मिश्री पेट में बांध ली और फिर कसम खाई – “जब तक उसे लूट नहीं लूंगा, तब तक पानी नहीं पिऊंगा।”

अब नाम बार-बार उसके मुख पर आने लगा – “श्यामसुंदर, श्यामसुंदर, श्यामसुंदर।”
भगवान का चिंतन बनने लगा।

वह पैदल चलकर ब्रज पहुंचा। जहां गाय चर रही थीं, वहां पूछने लगा – “श्यामसुंदर कहां हैं?”
लोगों ने कहा – “यह पूरा ब्रजमंडल है, हर गौशाला भगवान के नाम की है।”

वह बोला – “नहीं, नहीं! वही श्यामसुंदर, जिन्हें यशोदा मैया ने श्रृंगार करके गाय चराने भेजा।”
लोगों ने कहा – “वह कथा में लिखा है, प्रकट में थोड़ी रह गए।”
डाकू बोला – “अरे! पंडित जी झूठ नहीं बोल सकते। हम चोर-डाकू झूठ बोल सकते हैं, पंडित झूठ नहीं बोल सकते। भगवान हैं। अपने भगवान को श्यामसुंदर ही तो कहा।”

अब एकांत में विकल होकर उसने पुकारा – “अगर कोई ईश्वर है तो मुझे श्यामसुंदर से मिला दो। मैंने कसम खाई है, बिना लूटे पानी नहीं पिऊंगा।”

इतने में आवाज आई – “अरे, गवारिया! श्यामसुंदर, तुम्हारी गाय उधर जा रही है।”
वह दौड़ा। देखा – कमर में हाथ रखे, पीतांबर पहने, वही श्रृंगार जैसा पंडित जी ने वर्णन किया था।

श्यामसुंदर, कमल-नयन, मोर-मुकुट, करधनी और लकुटी।
डाकू ने चाकू निकाला।

सखा लोग थे, गायें दिव्य थीं, सब भगवान की लीला थी। भगवान ने सखाओं को इशारा किया – “जाओ, इसको हमें एकांत में निहाल करना है।”

डाकू बोला – “तू डरता तो नहीं?”
भगवान मुस्कराए – “हम काल से भी नहीं डरते, तुझसे क्या डरेंगे?”
डाकू बोला – “मेरा नाम सुना नहीं होगा, इसलिए तू डरेगा। मेरा नाम है – गोवर्धन डाकू।”
भगवान ने कहा – “गोवर्धन ही तो नाम है, और मेरा नाम है – गोवर्धनधारी।”

अब वार्ता में डाकू का अज्ञान नष्ट होने लगा।
उसे याद आया – पंडित जी ने कहा था, “माखन-मिश्री खिला देना।”
तो उसने भगवान को खिलाई। भगवान ने भी खाई।

उस क्षण उसका अज्ञान मिट गया। वह भगवान के चरणों में गिर पड़ा।

और यही शिक्षा दी गई –
जीवन यूं ही हलुआ-पूरी खा कर नहीं बीतता। अगर भूख-प्यास सहकर केवल भगवान के दर्शन की लगन हो, तो उसी समय भगवान मिल जाते हैं।

हम सुनते तो बहुत हैं, समझदार भी बहुत हैं, लेकिन भजन न होने के कारण उसको उतार नहीं पाते।
इसलिए भजन शुरू करो, नाम-जप करो, निश्चय करो कि इस मार्ग में चलना है।

पाप का आचरण नहीं करना, गंदी बात नहीं करनी, किसी को दुख नहीं देना, किसी का अहित नहीं करना।
तभी भीतर दिव्यता प्रकट होगी। यही भगवान तक पहुंचने का मार्ग है।

Listen to the full Govardhan Daku story from Gurudev Ji Maharaj.

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